Wednesday, November 27, 2024

मध्य प्रदेश: CAG रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा, 206.21 करोड़ का नुकसान…

भोपाल। मध्य प्रदेश के नौ जिला खनिज प्रतिष्ठानों में जिम्मेदारों की लापरवाही से वर्ष 2018-19 से लेकर 2020-21 के बीच सरकार को 206.21 करोड़ का नुकसान हुआ है। नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। इसके लिए रिपोर्ट में अधिकारियों की जिम्मेदारी निश्चित करने के लिए कहा गया है।

2023 का प्रतिवेदन सोमवार को विधानसभा में हुआ पेश

भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट का मध्य प्रदेश शासन का वर्ष 2023 का प्रतिवेदन सोमवार को विधानसभा में पेश किया गया है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि प्रदेश के 22 जिलों में मुख्य खनिज मौजूद है। जिनमें से जिला खनिज प्रतिष्ठानों की उच्च प्राप्तियों वाले नौ जिलों की जांच हुई। इन जिलों में मंडल और कार्यकारी समितियों की बैठकों का नियमित संचालन से जुड़े प्रशासनिक प्रावधान का पालन नहीं हुआ। खान प्रभावित क्षेत्र की ओर प्रभावित लोगों की सूची और देय भुगतान किया गया। डीएमएफ निधि के रजिस्टर के रिकॉर्ड का रखरखाव नहीं हुआ। चार्टर्ड अकाउंटेंड ने डीएमएफ के खातों का ऑडिट नियमित नहीं किया। इसके अलावा कई गड़बड़ियां पाई गई। जैसे पट्टेदारों द्वारा डीएफएफ निधि में कम योगदान, विलंबित भुगतान पर ब्याज की वसूली न होना। डीएमएफ में निष्क्रिय पड़ी धनराशि, पात्र गतिविधियों पर असंगत व्यय करना और कार्य निष्पादन करने वाली संस्थाओं से प्रयोग की गई अग्रिम धन राशि भी नहीं वसूली गई।

54 की जगह 18 बैठके हुई

रिपोर्ट के मुताबिक ऑडिट के तीन सालों में 54 बैठकें की जानी थी, लेकिन 18 बैठकें ही आयोजित हुई। कार्यकारी समिति की 108 बैठकों की जगह 33 बैठकें ही आयोजित हुई। वर्ष 2020-21 के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंड द्वारा किसी भी डीएमओ का ऑडिट नहीं किया गया। सात जिलों में देय और भुगतान का रजिस्ट्रर ही नहीं बनाया गया है। नौ जिला खनिज कार्यालयों और संचालनालय भौमिकी तथा खनिकर्म भोपाल के अभिलेखों की नमूना जांच के चलते सामने आया कि नियम के मुताबिक विकसित की जाने वाली वेबसाइट ही नहीं बनाई गई है।

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने क्या कहा?

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने बताया कि स्मारकों के संरक्षण को बढ़ाने के लिए संचालनालय ने कोई विस्तृत नीति या दिशा निर्देश नहीं बनाए हैं। मध्यप्रदेश के पुरातत्व विभाग की अनुसंधान अन्वेषण गतिविधियां घटती जा रही है। जबलपुर, ग्वालियर और इंदौर क्षेत्र के स्मारक को संरक्षित स्मारक करने का ऐलान कर दिया गया है लेकिन 1984 से 2019 तक अधिसूचनाएं जारी होने के बाद भी एक बार भी कोई संरक्षण कार्य नहीं हुआ। संचालनालय ने जबलपुर में स्मारक पर लगाने के लिए अगस्त 2018 में साइन बोर्ड खरीदे जो आज तक नहीं लगे। रिपोर्ट के मुताबिक 100 वर्ष से अधिक पुराने 8 स्मारकों को संरक्षित करने की अधिसूचना जारी ही नहीं की गई। 7 स्मारकों पर लोगों द्वारा अतिक्रमण रखा गया था। जिन्होंने अधिसूचना जारी होने के बाद भी अपना कब्जा जारी रखा जिसे विभाग हटवा नहीं पाए उल्टे उसने इनके संरक्षण के औचित्य का उल्लेख किए बिना विरासत होटलों में परिवर्तित करने के लिए गैर अधिसूचित कर दिया गया और उसके बाद विरासत होटलों में बदला नहीं गया।

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