भोपाल। लोकसभा चुनाव के बाद आपकी जेब पर जबरदस्त भार पड़ने वाला है. सरकार प्रदेश में प्रॉपर्टी टैक्स, सीवेज, कचरा प्रबंधन और पानी का शुल्क बढ़ाने की तैयारी कर रही है। प्रॉपर्टी टैक्स में वृद्धि कचरा प्रबंधन, सीवेज और पानी के शुल्क में होने वाली बढ़ोतरी से अलग होगी। सरकार कचरा प्रबंधन, सीवेज और पानी […]
भोपाल। लोकसभा चुनाव के बाद आपकी जेब पर जबरदस्त भार पड़ने वाला है. सरकार प्रदेश में प्रॉपर्टी टैक्स, सीवेज, कचरा प्रबंधन और पानी का शुल्क बढ़ाने की तैयारी कर रही है। प्रॉपर्टी टैक्स में वृद्धि कचरा प्रबंधन, सीवेज और पानी के शुल्क में होने वाली बढ़ोतरी से अलग होगी। सरकार कचरा प्रबंधन, सीवेज और पानी पर जितना खर्च करती है, उसी अनुपात में इसका शुल्क बढ़ाएगी। जबकि, प्रॉपर्टी टैक्स कलेक्टर गाइडलाइन के हिसाब से बढ़ाया जाएगा। कलेक्टर गाइडलाइन के मुताबिक 2 सालों में जितना प्रॉपर्टी टैक्स बढ़ाया गया है उसी के मुताबिक नया टैक्स निर्धारित किया जाएगा। सरकार ने इसके लिए अलग योजना बना रखी है।
बताया जाता है कि सरकार हर निकाय के महापौर और नगर पालिका अध्यक्ष के साथ बैठक करेगी। इसमें वह इन पदाधिकारियों को कहेगी कि वे जनता को TAX बढ़ाने के लिए राजी करें। सरकार ने इसकी शुरुआत कर भी दी है. उसने इस नए TAX की शुरुआत इंदौर नगर निगम से की है. यहां प्रॉपर्टी टैक्स में वृद्धि कर दी गई है. यह वृ्द्धि करने के लिए नगर निगम ने एक पुराने फैसले को आधार बनाया है. अब चुनाव के रिजल्ट आने के बाद पूरे प्रदेश के निकाय TAX में वृद्धि का प्रस्ताव लाएंगे. नगर निगम जनता को यह कहकर मनाएगी इस बढ़े हुए कर का इस्तेमाल प्रदेश के विकास में होगा।
गौरतलब है कि केंद्रीय शहरी विकास सचिव ANURAG JAIN ने भोपाल में केंद्र सरकार की योजनाओं की समीक्षा की थी. उन्होंने पेयजल योजनाओं के लिए नगरीय निकायों को संचालन और सधारण की राशि देने से इनकार कर दिया था. बैठक में साफ कह दिया था कि अब निकायों को आत्मनिर्भर होना होगा. उनकी इसी बात पर नगरीय विकास विभाग नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषदों को USER चार्ज की वसूली जनता से करने के निर्देश दे रहा है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्रीय शहरी मंत्रालय ने साल 2020 में विशेष निर्देश जारी किए थे. मंत्रालय ने देश के सभी राज्यों से कहा था कि सीवेज और पानी का सौ प्रतिशत खर्च जनता से वसूला जाए. मंत्रालय ने कहा था कि अगले तीन साल में यूजर चार्ज यानी पानी, सीवेज और सफाई का खर्च जनता से ही लें. ये निर्देश मिलने के बाद सरकार ने नगर निकायों को 3 साल का स्लैब भी बनाकर दिया था.