भोपाल। पत्रकारिता के भीष्म पितामह कहे जानें वाले पीपी सर अब हमारे बीच में नहीं है लेकिन प्रेरणास्पद व्यकितत्व की बदौलत पत्रकारिता के विद्यार्थियों के जीवन पर वह अमिट छाप छोड़ गए। पत्रकारिता के गुरु पीपी सर की पुण्यतिथी के अवसर पर उनके विद्यार्थियों द्वारा भोपाल स्थित हिंदी भवन में रविवार शाम 4 बजे से 7 बजे तक एक स्मृति सभा का आयोजन किया गया है। बता दें भोपाल के हर चौराहे पर पीपी सर की याद में पोस्टर लगे हुए है।
हिंदी भवन में होगा आयोजन
पॉलिटेक्निक चौराहे पर स्थित हिंदी भवन में रविवार शाम चार बजे से सात बजे तक कार्यक्रम आयोजित होगा जहां वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर और समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर पीपी सिंह के व्यक्तित्व एवं उनके कार्यों पर प्रकाश डालेंगे। वहीं दो वरिष्ठ पत्रकार धर्मेंद्र सिंह भदौरिया और संदीप पुरोहित ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर अपने व्याख्यान देंगे। मशहूर साया बैंड के सदस्यों द्वारा दुष्यंत कुमार, कबीर, मीर तक़ी मीर, माखन लाल चतुर्वेदी समेत कई दिग्गज रचनाकारों की रचनाओं पर संगीतमय प्रस्तुति देंगे और विद्यार्थी से भरी शाम एक प्रमुख आकर्षण रहेगी।
लघु फिल्म की जाएगी प्रर्दशित
पीपी सिंह के विद्यार्थियों की स्मृतियों से सुसज्जित एक लघु फिल्म ‘एक किरदार-किस्से हज़ार’ का प्रदर्शन भी किया जाएगा। इस आयोजन के समांतर ही कार्यक्रम स्थल पर शाम तीन बजे से सात बजे तक भोपाल मेमोरियल अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र के सहयोग से एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाएगा। रक्तदान शिविर दोपहर 3 बजे से आयोजित होगा। इस कार्यक्रम में पीपी सिंह के विद्यार्थी, उनके परिजन एवं उनके जानने वाले तमाम गणमान्य लोग हिस्सा लेंगे और अपने-अपने ढंग से पीपी सिंह को तथा अपने जीवन में उनके योगदान को मिलकर याद कर उन्हें नमन करेंगे।
7 मार्च को हुआ था निधन
बता दें कि गत वर्ष 7 मार्च को हदयगति रुक जाने से गुरु पुष्पेंद्र पाल का आकस्मिक निधन हो गया था। 2015 में वे मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग में मुख्यमंत्री के ओएसडी नियुक्त हुए। साथ ही सरकार के रोजगार अखबार रोजगार और निर्माण के संपादक भी थे. इससे पहले वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष रह चुके हैं।
जुंबा पर सिर्फ एक ही बात, आप क्यूं इतनी जल्दी चले गए
‘इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’… यह पीपी सर का पसंदीदा भजन था, जिसके बोल मंच से हमेशा सुनाई देंगे। विद्यार्थी अक्सर इस भजन को सुनते ही पुष्पेंद्र पाल के याद में खो जाते है। भावशून्य हो जाते, जुबान लड़खड़ा जाती. आवाज ही नहीं निकलती. कुछ उनकी यादों में ऐसे खो जाते कि इसे व्यक्त करने के लिए शब्द अटक जाते है। खैर एक ही दिक्कत है, शब्द साधक पुष्पेंद्र के लिए भाव तो खूब हैं पर अल्फाजों से वह बयां नहीं किए जा सकते। इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल.. जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल ला ला ललल्लल्ला…