भोपाल। हड्डियां टूटने पर फैक्चर चढ़ाना या इंप्लांट करना और आसान हो गया है। अब आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से टूटी हुई हड्डी पर इंप्लांट किया जाएगा। AI के समावेश से मरीज के आकार के आधार पर इंप्लांट तैयार हो जाता है। इसमें पेशेंट को दर्द से तुरंत राहत मिल जाती है। लचक या […]
भोपाल। हड्डियां टूटने पर फैक्चर चढ़ाना या इंप्लांट करना और आसान हो गया है। अब आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से टूटी हुई हड्डी पर इंप्लांट किया जाएगा। AI के समावेश से मरीज के आकार के आधार पर इंप्लांट तैयार हो जाता है। इसमें पेशेंट को दर्द से तुरंत राहत मिल जाती है। लचक या अन्य किसी तरह की कोई समस्या नहीं रहती है।
यह हड्डी के फैक्चर को सही जगह बैठाने में भी कारगर साबित होता है। इस प्रक्रिया में मरीज के फैक्चर का सीटी स्कैन किया जाता है। फिर उसका 3-डी रिकंस्ट्रक्शन होता है यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से थ्री डायमेंशन तैयार किया जाता है। उसे थ्री डी प्रिंटर में डालते हैं, उससे हड्डी के मॉडल का प्रिंट आउट बन जाता है। इस प्रिंट आउट में हड्डी के टुकड़े अलग-अलग दिखाई देते हैं। उनके साइज के हिसाब से इंप्लांट की बनावट को बदल सकते हैं और फिर हड्डी के आकार के मुताबिक मरीज में फिट किया जाता है।
दरअसल हर मरीज के आकार के मुताबिक उनका हिप ज्वाइंट (कूल्हा) अलग होगा। यानी उसके आकार के अनुसार इंप्लांट को तैयार किया जाता है। इस प्रिंट आउट में हड्डी के टुकड़े अलग-अलग दिखाई देते हैं। उनके साइज के हिसाब से इंप्लांट की बनावट को बदल सकते हैं और फिर हड्डी के आकार के अनुसार मरीज में फिट किया जाता है। थ्री डी प्रोसेस और इंप्लांट के लिए दो दिन का समय लगता है। इंप्लांट टाइटेनियम का बना होता है। यह एक प्रकार की धातु जैसा होता है। इसका किसी से रिएक्शन नहीं होता और न ही मैग्निक प्रापर्टी होती है।
इंप्लांट के बाद एमआरआई भी कर सकते हैं। इस प्रोसेस में कोई भी शरीर का अंग रिप्लेस नहीं होता बल्कि बॉडी की हड्डी के फैक्चर को सही जगह बैठाने के लिए होता है। नॉर्मल कोई भी फैक्चर ठीक होने में छह से आठ हफ्ते का समय लगता है, फिर तीन से छह माह में उसके रिजल्ट्स पता चलता है कि मरीज आत्मनिर्भर होकर चल रहा है या नहीं। नॉर्मल सर्जरी की तुलना में इसका खर्च लगभग 25 हजार रुपए से ज्यादा होता है।