जयपुर। राजस्थान के टोक जिले का नगर गांव हर साल धुलंडी होली के मौके पर एक अनोखी परंपरा निभाता है, जहां एक दिन महिलाओं का पूरा राज होता है। इस दिन गांव में कोई भी पुरुष मौजूद नहीं रहता। बता दें गांव की परंपरा के अनुसार धुलंडी के दिन सुबह 10 बजे तक गांव के […]
जयपुर। राजस्थान के टोक जिले का नगर गांव हर साल धुलंडी होली के मौके पर एक अनोखी परंपरा निभाता है, जहां एक दिन महिलाओं का पूरा राज होता है। इस दिन गांव में कोई भी पुरुष मौजूद नहीं रहता। बता दें गांव की परंपरा के अनुसार धुलंडी के दिन सुबह 10 बजे तक गांव के सभी पुरुषों को घर से बाहर निकाल दिया जाता है. यह परंपरा करीब 500 साल पुरानी बताई जाती है, जिसे तत्कालीन जागीरदारों ने यह सुनिश्चित करने के लिए लागू किया था कि महिलाएं एक दिन के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होकर होली खेल सकें।
गांव से निकाले गए पुरुष तीन किलोमीटर दूर चामुंडा माता मंदिर परिसर में इकट्ठा होते हैं, जहां उनके लिए एक विशेष मेला आयोजित किया जाता है। वहीं, गांव में सिर्फ महिलाएं और युवतियां ही मौजूद रहती हैं। वे खुलकर रंग-गुलाल उड़ाती हैं और बिना किसी रोक-टोक के उत्सव का आनंद लेती हैं। वहीं अगर कोई पुरुष गलती से भी इस दिन गांव में आ जाए, तो उसे सजा भुगतनी पड़ती है। महिलाएं उसे रंग से भरी कड़ाही में डालकर पूरा रंग देती हैं और फिर उसकी पिटाई कर गांव से भगा देती हैं।
धुलंडी के अगले दिन गांव में एक और अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसे ‘कोड़ा मार होली’ कहा जाता है। इस दौरान गांव के अलग-अलग स्थानों पर बड़ी कड़ाहियों में रंग भरा जाता है और महिलाएं कोड़े लेकर खड़ी होती हैं। जब पुरुष गांव में लौटते हैं, तो महिलाएं उन्हें रोकने के लिए कोड़ों से हल्की मार लगाती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।