भोपाल। धर्म की दुनिया में प्रसिद्ध तपस्वी संत सियाराम बाबा के निधन की खबर चर्चा में है। सियाराम बाबा मोक्षदा एकादशी (बुधवार) की सुबह मोक्ष को चले गए। एमपी में खरगोन जिला स्थित नर्मदा नदी के तट पर तेली भट्याण आश्रम के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया। जहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु उनके […]
भोपाल। धर्म की दुनिया में प्रसिद्ध तपस्वी संत सियाराम बाबा के निधन की खबर चर्चा में है। सियाराम बाबा मोक्षदा एकादशी (बुधवार) की सुबह मोक्ष को चले गए। एमपी में खरगोन जिला स्थित नर्मदा नदी के तट पर तेली भट्याण आश्रम के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया। जहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु उनके अंतिम दर्शन करने आए।
साथ ही मुख्यमंत्री मोहन यादव भी बाबा के अंतिम दर्शन के लिए भट्याण आश्रम पहुंचे थे। मुख्यमंत्री ने सियाराम बाबा के निधन को समाज और संत समुदाय के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। उन्होंने बाबा की समाधि और क्षेत्र को तीर्थ स्थल बनाने की घोषणा की है। खरगोन जिले के पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीणा का कहना है कि सियाराम बाबा ने भट्याण गांव में अपने आश्रम में बुधवार सुबह लगभग 6.10 बजे पर आखिरी सांस ली। बाबा पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें निमोनिया की बीमारी हो गई थी।
एमपी के सीएम मोहन यादव, पूर्व चीफ मिनिस्टर दिग्विजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव समेत कई अन्य नेताओ ने निमाड़ क्षेत्र में पूजनीय हिंदू संत के निधन पर दुख जताया है। मौन साधना करने वाले और भगवान हनुमान जी के समर्पित अनुयायी सियाराम बाबा भक्तों से केवल 10 रुपये का दान लेते थे। 10 रुपये से एक भी पैसा ज्यादा वह अपने भक्तों से नहीं लेते थे। इन्हीं 10-10 रुपयों को जमा कर धनराशि का उपयोग नर्मदा घाटों की मरम्मत और मंदिरों के विकास के लिए करते थे।
बाबा अपने गहरे आध्यात्मिक जुड़ाव और रामचरितमानस के निरंतर पाठ के लिए पूरे देश में जाने जाते थे। अपनी सादगी भरे जीवन के लिए मशहूर बाबा बहुत कम कपड़े पहना करते थे। सियाराम बाबा केवल एक लंगोट में ही रहते थे। वे अपना खाना बनाने से साफ-सफाई तक अपने सारे काम खुद ही किया करते थे। बाबा ने 12 साल तक एक अपने आश्रम में पेड़ के नीचे एक पैर पर खड़े रहकर कठोर तपस्या की थी।
इस दौरान वह सिर्फ नीम की पत्तियों और बेल पत्रों का ही सेवन करते थे। जब मौन व्रत खुला तो उनके मुहं से पहला शब्द निकला- ‘सियाराम.’ तभी से बाबा को सियाराम बाबा के नाम से जाना जाने लगा। उनका असली नाम किसी को नहीं पता।