भोपाल। मध्यप्रदेश की चार हस्तियों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में बुधवार यानी कल आयोजित कार्यक्रम के दौरान सभी को पद्मश्री से नवाजा गया। इन सभी के नामों का ऐलान गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हुआ था। इनमें से उमरिया की जोधइया बैगा, झाबुआ के रमेश और शांति परमार को कला के लिए और जबलपुर के डॉ. मुनीश्वर डावर मेडिकल के क्षेत्र में पद्मश्री के लिए चयनित हुए थे।
पुरस्कार कार्यक्रम में ये नेता रहे शामिल
आपको बता दें कि पुरस्कार प्राप्त करने के दौरान पहले इन लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रणाम किया। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी ने उन्हें पुरस्कार देकर सम्मान दिया। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र सिंह यादव मौजूद थे। तो चलिए अब आपको उन महान लोगों से रूबरू कराते हैं, जिन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
जोधइया बैगा
उमरिया जिले की 83 वर्षीय जोधइया बैगा (अम्मा) का विवाह लगभग 14 साल की उम्र में ही हो गया था। लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ वर्षों बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गई। बता दें कि आज से लगभग 15 साल पहले उनकी मुलाकात आशीष स्वामी से हुई। उन्होंने कहा कि कब तक आप ऐसे ही पत्थर तोड़ती रहोगी और मजदूरी करेंगी। आशीष स्वामी के कहने पर 2008 में जिले के लोढ़ा में स्थित जनगण तस्वीर खाना से जोधइया अम्मा ने आदिवासी कला का आरंभ किया। उन्होंने ही अम्मा को चित्रकारी की क्लास दी थी। इसके बाद अम्मा आगे बढ़ती चली गई. जोधइया द्वारा बनाई गई पेटिंग राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध होने लगी। वे शांति निकेतन विश्व भारती विश्वविद्यालय, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, आदिरंग आदि के कार्यक्रमों में भी भाग ले चुकी हैं। जनजातीय कला के लिए उन्हें कई मंचों से सम्मानित किया जा चुका है. पर आज पद्मश्री पुरस्कार मिलने से वो बहुत खुश हैं. इस सम्मान को प्राप्त करने के दौरान उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार मैं अपने गुरु को समर्पित करती हूँ. अगर आज वे इस दुनियां में होते तो मेरी इस उपलब्धि पर बहुत प्रसन्न होते।
डॉ. मुनीश्वर चंद डावर
77 साल के डॉ. मुनीश्वर चंद डावर के बारे में जानकर आपको हैरानी होगी कि वे अपने मरीजों का मात्र 20 रुपये में इलाज करते हैं। उन्होंने 50 साल पहले 2 रुपए फीस लेकर अपने कारोबार की शुरुआत की थी। डॉक्टर ने कहा कि वे कोरोना काल में भी लोगों की मदद करना चाहते थे, लेकिन वे शत-प्रतिशत अपनी सेवा नहीं दे पाए. क्योंकि मुनीश्वर चंद खुद ही दो बार कोरोना से संक्रमित हो चुके थे. डॉ. डावर ने आगे बताया कि जब उन्होंने सेना में भर्ती के लिए परीक्षा दी थी, तब 533 उम्मीदवारों में से केवल 23 का चयन हुआ था। इनमें से वे 9वें स्थान पर थे। बता दें कि 10 नवंबर 1972 के दिन जबलपुर में उन्होंने अपने पहले मरीज का इलाज किया था और तब उन्होंने अपनी फीस सिर्फ 2 रुपये रखी थी. साथ ही उन्होंने कहा कि वे 1986 तक अपने मरीजों से 2 रुपए फीस के रूप में लेते थे।
रमेश और शांति परमार
बता दें कि रमेश और शांति परमार झाबुआ के रहने वाले हैं। आदिवासी गुड़िया कला को पहचान दिलाने में दोनों को श्रेय जाता है। रमेश परमार ने कहा कि आदिवासी गुड़िया बनाने का आरंभ मेरी पत्नी शांति परमार ने वर्ष 1993 से किया था। शांति परमार ने कहा कि आदिवासी गुड़िया बनाने के लिए कपड़ा, तार, रूई, धागा और रंगों की जरुरत होती है। एक गुड़िया का जोड़ा बनाने में करीब एक घंटे का समय लग जाता है। इन गुड़िया में जिले की आदिवासी समाज की झलक देखने को मिल जाएगी। किसी गुड़िया के सिर पर बांस की टोकरी, तो किसी के सिर पर गठरी का बोझ होता है।आदिवासी पारंपरिक हथियार तीर-कमान, फालिया, हंसिया, गोफन भी इन गुड़िया के साथ देखने को मिल जाएंगे।
तीन कैटेगरी में दिया जाता है पद्म श्री पुरस्कार
पद्म विभूषण पुरस्कार असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए हासिल होता है.
पद्म भूषण पुरस्कार उत्कृष्ट कोटि की विशिष्ट सेवा देने के लिए प्राप्त होता है.
पद्म श्री पुरस्कार से किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा प्रदान करने वाले व्यक्ति को सम्मानित किया जाता है.