भोपाल. पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार की आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग से प्रदेश की सियासत गरमा गई है। आगामी विधानसभा चुनाव में दोनों ही प्रमुख दलों यानी भाजपा व कांग्रेस की चुनावी रणनीति के केंद्र बिंदु आदिवासी ही हैं। इस वर्ग के साथ के बिना किसी दल की सरकार बन पाना मुश्किल है। […]
भोपाल. पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार की आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग से प्रदेश की सियासत गरमा गई है। आगामी विधानसभा चुनाव में दोनों ही प्रमुख दलों यानी भाजपा व कांग्रेस की चुनावी रणनीति के केंद्र बिंदु आदिवासी ही हैं। इस वर्ग के साथ के बिना किसी दल की सरकार बन पाना मुश्किल है। सिंघार ने मांग भले ही कांग्रेस नेताओं से की है, लेकिन इससे दोनों ही दलों की मुसीबत बढ़ गई है। 2018 के चुनाव में आदिवासी वोटर छिटकने के कारण भाजपा की दोबारा सरकार नहीं बन पाई थी और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी। यही वजह है कि सिंघार के बयान के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही चुनौती बढ़ गई है.
दसअसल धार जिले की बदनावर विधानसभा के कोद में विधायक उमंग सिंगार टंट्या मामा की मूर्ति का अनावरण करने बाइक रैली से पहुंचे थे। उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनना चाहिए। साथ ही कहा कि मुझे मुख्यमंत्री नहीं बनना। जब तक मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री आदिवासी नहीं बनता, आप लोग घर पर मत बैठना। मैं चाहता हूं कि मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री आदिवासी बने। मैं अपनी बात नहीं कर रहा। मैं अपने समाज की बात कर रहा हूं। उन्होंने कांतिलाल भूरिया का नाम आगे बढ़ाया। सिंघार के बयान पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने चुटकी ली। उन्होंने कहा कि ‘अपन तो उमंग के कायल हैं.
दरअसल कांग्रेस ने कुछ दिन पहले चुनाव समिति और चुनाव अभियान समिति का ऐलान किया। 34 सदस्यीय चुनाव अभियान समिति की कमान आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को दी और 20 सदस्यीय चुनाव समिति के अध्यक्ष पीसीसी चीफ कमलनाथ हैं। इन दोनों ही समितियों में उमंग सिंघार को जगह नहीं मिली, जबकि कमलनाथ के करीबी दो पूर्व मंत्रियों को कमेटी में जगह मिल गई। इस बात से उमंग सिंघार प्रदेश के शीर्ष कांग्रेस नेताओं से नाराज हैं। यही वजह है कि उन्होंने आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का मुद्दा उछाला है.
आपको बताते चलें कि प्रदेश में 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। जबकि करीब 80 सीटों पर यह वर्ग हार जीत तय करता है। प्रदेश में पिछले 67 साल में 18 मुख्यमंत्री बने। इनमें वर्ष 1967 में 13 दिन के लिए नरेश चंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे। वे तकनीकी रूप से आदिवासी वर्ग से आने वाले एकलौते मुख्यमंत्री बने थे। आदिवासी समाज से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में कई नेता आए, लेकिन उनको नजर अंदाज किया गया। भाजपा में तो स्थिति यह है कि मालवा-निमाड़ जैसे क्षेत्र में उसके पास आदिवासी वर्ग का कोई बड़ा नेता ही नहीं है। अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कांतिलाल भूरिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उमंग सिंघार ने उनको मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर दी है।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग को लेकर धार जिला केंद्र बिंदु रहा है। 1980 में स्व. शिवभानु सिंह सोलंकी मनावर से कांग्रेस विधायक थे और उन्हें प्रदेश कांग्रेस विधायक दल का नेता चुन लिया गया था। तब स्व.अर्जुन सिंह को संजय गांधी की निकटता का लाभ मिला और प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया था। इसके बाद प्रदेश में परिवहन मंत्री रहे प्रताप सिंह बघेल और उमंग सिंगार की बुआ कांग्रेस की पूर्व उप-मुख्यमंत्री जमुना देवी लगातार प्रदेश से आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग करती रहीं.