भोपाल। प्रबोधिनी एवं देवउठनी एकादशी का पर्व आज यानी मंगलवार को मनाया जा रहा है। वेद पुराणों की माने तो दीपावली के बाद पड़ने वाली एकादशी के दिन देवउठनी कहते हैं। यही वजह है कि देवउठनी एकादशी के बाद से ही सारे मंगलकार्य आरंभ हो जाते हैं।
तुलसी विवाह के लाभ
इस एकादशी को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु छीर सागर में 4 महीने आराम करने के बाद निद्रा से जागते हैं। कार्तिक मास की एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु जागते हैं। इनके जागने के बाद ही से सभी तरह के शुभ और मांगल कार्यों की शुरूआत हो जाती है। ग्वालियर के ज्योतिषाचार्य रवि शर्मा का कहना है कि इस दिन तुलसी के साथ भगवान शालिग्राम का विवाह किया जाता है। तुलसी और शालिग्राम विवाह करने से कई जन्मों के पापों का प्रायश्चित हो जाता है। साथ ही घर में संपन्नता बनी रहती है।
तुलसी विवाह की पूजा विधि
जिन व्यक्तियों के घर में कन्या नहीं है, वह एकादशी के दिन तुलसी शालिग्राम विवाह करके कन्यादान का फल प्राप्त कर सकते हैं। भगवान के श्री विग्रह के साथ तुलसी जी का विवाह बड़ी धूमधाम से किया जाता है। तुलसी जी के पौधे को गमले में रखकर दुल्हन की तरह सजाया जाता है और भगवान शालिग्राम जी के साथ उनका विवाह किया जाता है। एकादशी के दिन घरों में मंदिरों में गन्ने का मंडप तैयार किया जाता है। उस मंडप में ही भगवान शालिग्राम विष्णु भगवान की मूर्ति रखकर उनकी पूजा की जाती है।
जागरण और कीर्तन का महत्व
भगवान को बेर, आंवले, गन्ना, भाजी, सीताफल, सिंघाड़े, ज्वार के भुट्टे आदि अर्पित किए जाते हैं। शालिग्राम भगवान का विधि पूर्वक पूजन करके भगवान समेत मंडप की परिक्रमा की जाती है। देवउठनी एकादशी से मांगलिक कार्य करने शुरू हो जाते है। इस साल देव उठने के साथ ही मंगल शहनाई शुरु हो जाती है। एकादशी के दिन जागरण और भागवत कीर्तन का खास महत्व होता है।