Monday, September 16, 2024

MP News: महाकाल को बांधी सबसे पहले राखी, रक्षाबंधन की हुई शुरूआत

भोपाल. कोई भी पर्व या त्यौहार हो, उसकी शुरुआत सबसे पहले बाबा महाकाल के दरबार से की जाती है. सभी त्यौहार दुनिया में सबसे पहले महाकाल के दरबार में मनाए जाते हैं. इसी कड़ी में आज रक्षाबंधन के पर्व पर बाबा महाकाल में होने वाली भस्म आरती के दौरान पंडे-पुजारियों ने बाबा महाकाल को राखी अर्पित की और रक्षाबंधन के त्यौहार की शुरुआत की.

महिलाओं ने बांधी राखी

सावन के महीने के हर दिन की तरह बाबा महाकाल का मनमोहक शृंगार किया गया. इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे. हर साल सबसे पहले महाकाल बाबा को रक्षाबंधन पर भस्मा आरती में राखी अर्पित कर पर्व की शुरुआत की जाती है, इस बार भी ये परंपरा निभाई गई और पूरे देश में रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा. बता दें कि महाकाल के लिए पुजारी परिवार की महिलाओं द्वारा विशेष राखी बनाकर तैयार की गई थी, जिसे बाबा को अर्पित किया गया और रक्षाबंधन की शुरुआत की गई. हर साल बाबा महाकाल को राखी बांधने के लिए पुजारी परिवार की महिलाएं देर रात दो बजे ही मंदिर पहुंच जाती हैं और मंत्रोच्चार के बाद महाकाल को राखी बांधी जाती है. इसके बाद अन्य जगहों पर राखी बांधी जाती है. आज से श्रावण महिने का अंतिम दिन है. इस बार भद्रा का साया होने की वजह से राखी का पर्व रात 9:00 बजे के बाद मनाया जाएगा. लेकिन बाबा महाकाल के दरबार में आज भस्मारती में पुजारी परिवार की महिलाओं ने बाबा को राखी अर्पित कर पर्व की शुरुआत की.

सवा लाख लड्डुओं का भी लगेगा महाभोग

आज के दिन ही भगवान महाकाल को सवा लाख लड्डुओं का महाभोग भी लगाया जाता है. इसके लिए लड्डू लगभग 3 दिन में बनकर तैयार किए गए है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. राखी पर हर वर्ष राजाधिराज को सवा लाख लड्डूओं का भोग लगाया जाता है. इसके बाद सभी लड्डूओं का वितरण श्रद्धालुओं में किया जाएगा. महाकालेश्वर मंदिर में सभी त्योहारों की शुरुआत भस्म आरती के साथ होती है. सबसे बड़ी बात यह है कि सभी त्योहारों को मनाने के लिए कल चौघड़िया देखा जाता है लेकिन भगवान महाकाल के दरबार में पूजा अर्चना समय के साथ होती है. काल और चौघड़िया का यहां कोई फर्क नहीं पड़ता है. भगवान महाकाल खुद कालों के काल हैं, इसलिए चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का असर भी मंदिर पर नहीं पड़ता है. यहां पर मंदिर के कपाट कभी बंद नहीं होते हैं. भगवान महाकाल को तीनों लोगों का राजा माना जाता है, इसलिए सबसे पहले उनके दरबार से पर्व की शुरुआत होती है.

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