भोपाल. मध्यप्रदेश के दमोह जिले की जबेरा विधानसभा सीट का इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है। 66 वर्ष के इतिहास में तीन बार जबेरा विधानसभा क्षेत्र का नाम बदला गया। सबसे पहले 1952 में हुए विधानसभा चुनाव में तेंदूखेड़ा विधानसभा के नाम से हुए चुनाव में पहली बार कांग्रेस के दिवंगत रघुवर प्रसाद मोदी अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी लक्ष्मण सिंह से चुनाव जीते थे. पांच वर्ष बाद हुए 1957 के विधानसभा चुनाव में नोहटा विधानसभा क्षेत्र के नाम से चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के दिवंगत कुंजबिहारी गुरु ने निर्दलीय मुन्ना लाल से चुनाव जीता था। इसके अलावा 2007 में परिसीमन होने पर नोहटा का नाम जबेरा विधानसभा क्षेत्र हो गया।
2008 में जबेरा विधानसभा नाम से हुआ चुनाव
जबेरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र मध्य प्रदेश राज्य के 230 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह निर्वाचन क्षेत्र विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आया। परिसीमन से पहले, इस निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र तत्कालीन नोहटा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा था, जिसे 2008 में समाप्त कर दिया गया था. जबेरा दमोह जिले में स्थित 4 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है । यह निर्वाचन क्षेत्र जिले की संपूर्ण जबेरा और तेंदूखेड़ा तहसीलों को कवर करता है.
जबेरा का चुनावी इतिहास
1990 तक कांग्रेस के पास रहने वाली इस विधानसभा सीट पर राजबहादुर सिंह को टिकट मिलने से बागी हुए दिवंगत रत्नेश सॉलोमन निर्दलीय नोहटा विधानसभा से ठाल तलवार से चुनाव लड़े थे और कांग्रेस की परंपरागत सीट होने के बावजूद कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसक गई थी। भाजपा के ओम प्रकाश बुग्गे अपने निकटतम निर्दलीय प्रत्याशी रत्नेश सॉलोमन से चुनाव जीते थे, जिससे नोहटा विधानसभा में भाजपा का खाता खुल गया था। तब से लेकर अब तक जबेरा विधानसभा चुनाव का मुकाबला दोनों प्रमुख पार्टी कांग्रेस और भाजपा के बीच होता आ रहा है। बीच-बीच में गोंडवाना पार्टी के चुनाव मैदान में आने की वजह से एसटी वोट बैंक के चलते विधानसभा मुकाबला टक्कर में लाने के बावजूद आखिरकर हर जीत कांग्रेस-बीजेपी के बीच ही निर्णायक साबित हुई, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में दोनों प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस भाजपा के दल से एक-एक निर्दलीय खड़ा होने से मुकाबला चतुष्कोणीय हो गया। लोधी बाहुल्य जबेरा विधानसभा में दोनों पार्टियों के द्वारा जातिगत समीकरणों को साधने के लिए लोधी समाज के प्रत्याशी उतारने से अन्य जातियों की उपेक्षा को हवा देकर चुनावी मुकाबले को रोचक बनाया है। वहीं एसटी, एससी, बहुतायत जबेरा में बसपा के एसटी प्रत्याशी डेलन सिंह द्वारा हरिजन, आदिवासी भाई-भाई का नारा देकर चुनावी समीकरणों को गड़बड़ा रहे हैं. जबेरा विधानसभा के इतिहास से पता चलता है कि चुनाव में मेन मुकाबला कांग्रेस-बीजेपी के बीच ही है.
2018 के चुनाव परिणाम
2018 में जबेरा में कुल 29 प्रतिशत वोट पड़े थे। जिसमे भारतीय जनता पार्टी से धमेन्द्र लोधी ने कांग्रेस के प्रताप सिंह लोधी को 3,485 वोटों के अंतर से हराया था. बता दें कि इस चुनाव में धमेन्द्र लोधी को कुल 48,901 वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के प्रताप सिंह को 45416, बसपा के डेलन सिंह धुरवे को 10355, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के आशीष शुक्ला को 8444, आप पार्टी के बसंत राय को 1475, बीएमपी के सीताराम सिंह कुलस्ते को 481 वोट प्राप्त हुए थे. बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जबेरा में कुल 1,55,584 मतदाताओं ने वोट डाले थे.
जबेरा में लोगों की बड़ी समस्या
वहीं जबेरा विधानसभा की समस्या की बात की जाए तो इस क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या जलसंकट की है। पूरे विधानसभा में अनेक गांव ऐसे हैं, जहां गर्मी के मौसम में पेयजल नसीब नहीं होता है। सालों बाद भी यहां जलसंकट की स्थिति में कोई सुधार नहीं आ पाया है। इसके अलावा इस क्षेत्र के युवाओं को रोजगार के अवसर भी नहीं हैं और भी कई समस्या हैं, लेकिन पार्टियों का इन मुद्दों पर सबसे ज्यादा फोकस रहेगा. हालांकि अभी चुनाव में काफी समय है, इस दौरान पार्टियों को और भी कई मुद्दे मिल सकते हैं.