भोपाल। मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल डिंडौरी जिले का एक नाम लहरी बाई इन दिनों बहुत चर्चा में बना हुआ है। इसकी वजह उनके पास मौजूद मोटे अनाज का खजाना है, जिसे अब बीज बैंक कहा जा रहा है। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर स्थित सिलपीड़ी लहरीबाई का गांव है। उनके पास अनाज की उन किस्मों के बीज मौजूद हैं जो आज लोगों के खेतों से लुप्त हो गए हैं। कमरे में बीजों को इस तरह संभालकर रखा गया है जैसे किसी बैंक में नोटों को सुरक्षित रखा जाता है।
पीएम ने की लहरी बाई की कोशिश की तारीफ
बता दें कि वर्ष 2023 को विश्व मिलेट ईयर के रूप में सेलिब्रेट किया जा रहा है। ऐसे में ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, मक्का, काला गेहूं, सांबा, कोदो और कुट्टू जैसे मोटे अनाज हमारी थाली में फिर से लौटते हुए नजर आ रहे हैं। खाद्य सुरक्षा अभियान में 14 राज्यों में मिलेट्स को भी सम्मिलित कर लिया गया है। लहरी बाई के बीज बैंक में 30 से ज्यादा ऐसी किस्म के मोटे अनाज उपलब्ध हैं, जिनका नाम अब बहुत कम लोग ही जानते हैं। लहरी बाई की इस कोशिश की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की हैं।
मोटे अनाज को क्यों भूल रहे लोग
बता दें की अभी मोटा अनाज के उत्पादन में छत्तीसगढ़ पहले और मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर आता है। इसमें आदिवासी लोगों का योगदान बहुत अधिक है। नहीं तो ज्यादा मुनाफे के चक्कर में लोग सोयाबीन, तिलहन और हाइब्रीड अनाज बोने में लग गए और अपने परंपरागत अनाज को भूल बैठे हैं। लहरी बाई ने जिन बीजों को सुरक्षित रखा है उनमें कोदो, कुटकी, सावा, मढिया, ज्वार, बाजरा आदि सम्मिलित हैं। मोटा अनाज में कैल्शियम, आयरन, जिंक, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम जैसे तत्व के गुण होते हैं।
मोटा अनाज की 20 प्रतिशत हिस्सेदारी बची
मोटा अनाज की फसल में कीड़ों का प्रभाव नहीं पड़ता है। देश में 1960 में हरित क्रांति से पूर्व कृषि में मोटे अनाज की भागीदारी 40 प्रतिशत थी लेकिन हरित क्रांति में गेहूं और धान को प्राथमिकता दी गई, जिससे मोटे अनाज को लोग धीरे-धीरे भूलते गए और हिस्सेदारी घटकर मात्र 20 प्रतिशत पर आ गई।