Thursday, November 21, 2024

मध्य प्रदेश: ‘बढ़ते शहर घटता जल स्तर’ विषय पर जल प्रबंधन विशेषज्ञ सुधीन्द्र मोहन शर्मा ने कही ये बात

भोपाल। शहर की जनसंख्या और क्षेत्रफल में तेजी से विस्तार हो गया है। केन्द्रीय भू गर्भ जल आयोग के सर्वे के मुताबिक हम कुल पानी की खपत का खेती के काम में 90 प्रतिशत, घरेलू उपयोग में सिर्फ 7 प्रतिशत और उद्योगों में सिर्फ 3 प्रतिशत पानी का ही प्रयोग करते हैं। अगर खेती में लगने वाले पानी की मात्रा को 10 प्रतिशत कम कर दिया जाए तो घरेलू उपयोग के पानी की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। हम चट्टानी क्षेत्र के मालवांचल और गंगा बेसिन का भाग हैं। उद्योगों को पानी के प्रयोग के मामले में सरकार के अपने कुछ नियम हैं। सरकारी विभागों में जल वितरण और दोहन को लेकर आपस में सामंजस्य नहीं है। कुएं, बोरिंग, तालाब, जलाशय और अन्य पेयजल स्त्रोत के प्रबंध के लिए जिला, ब्लाक एवं ग्राम स्तर पर काम किया जाना चाहिए। पानी के सही उपयोग के लिए हमे रिचार्ज, पुनर्चक्रीकरण और वर्षा जल के पुनर्भरण की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।

जल प्रबंधन विशेषज्ञ सुधीन्द्र मोहन शर्मा ने बताए रोचक तथ्य

प्रख्यात जल प्रबंधन विशेषज्ञ सुधीन्द्र मोहन शर्मा ने रविवार को साउथ तुकोगंज स्थित एक होटल में विश्व जल दिवस के उपलक्ष्य में ‘बढ़ते शहर घटता जल स्तर’ विषय पर विचार गोष्ठी में प्रमुख वक्ता के तौर पर तथ्यों समेत अनेक रोचक और उपयोगी जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सरकार अपने स्तर पर जल प्रबंधन की दिशा में बहुत सारे काम कर रही है, पर जब तक हम इस दिशा में सावधान और गंभीर नहीं होंगे, तो हमें जल संकट का सामना करना पड़ेगा। सन् 1918 में पैट्रिक ईडिज नामक एक अंग्रेज विशेषज्ञ ने तत्कालीन राज दरबार को पत्र भेजकर सचेत किया था कि शहर की कपड़ा मिलों के कुएं बेहद अच्छे हैं और इनमें से कुछ बावडिय़ों को उपयोगी बनाया जा सकता हैं। इससे हमारी नदी के संरक्षण से हमें आरक्षित जल मिलने में भी मदद मिलेगी। उनके द्वारा एक कुएं से दूसरे कुए तक पानी ले जाने का सुझाव भी दिया गया था, ताकि किसी एक कुएं पर ज्यादा बोझ न बढ़ जाए। पानी का व्यवसायीकरण बिलकुल भी नहीं होना चाहिए, लेकिन बढ़ती जनसंख्या और शहर के बढ़ते क्षेत्रफल की वजह से पानी का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। शहर में 390 में से 237 कुओं में ही पानी है। पानी की कमी की और कई सारी वजह हैं. पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है मालवा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और अनियमित वर्षा, पर्यावरण का असंतुलन, मिट्टी का क्षरण, तालाबों एवं अन्य जल स्त्रोतों के जल का ठीक से प्रयोग न होने से भी जल का संकट मंडराता रहता है।

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